जिन्दगी खारज़ार में गुज़री जुस्तजू ए बहार में गुज़री कुछ तो पैमाने यार में गुज़री और कुछ एतबार में गुज़री मंज़िले ज़ीस्त हमसे सर न हुयी यादे ग़ेसु ए यार में गुज़री फूल गिरियां थे हर कली लरजाँ जाने कैसी बहार में गुज़री जिन्दगानी तवील थी लेकिन मौत के इंतज़ार में गुज़री आप से मिल के जिन्दगी अपनी जुस्तजू ए करार में गुज़री जो भी गुज़री बुरी भली “सानी” आप के इख्तियार में गुज़री | زندگی خار زار میں گزری جستجوے بہار میں گزری کچھ تو پیمانِ یار میں گزری اور کچھ اعتبار میں گزری منزل زیست ہم سے سر نہ ہوئی یاد گیسوئے یار میں گزری پھول گریاں تھے ہر کلی لرزاں جانے کیسی بہار میں گزری زندگانی طویل تھی لیکن موت کے انتظار میں گزری آپ سے مل کے زندگی اپنی جستجوے قرار میں گزری جو بھی گزری بری بھلی ثانیؔ آپ کے اختیار میں گزری |
Category: Poetry – ग़ज़लें और नग़मे
कत्ल किया
जिस घनी छांव की आखों में तमन्ना लेकर तुम को देखा था कभी अब वो तमन्ना न रही सर्दमोहरी ने उसे कत्ल किया और फिर? कितने तपते हुये सेहराओं से गुज़री हूँ मैं मेरी आखों में बग़ूलों के कई मंज़र हैं उम्र से हुस्न का रिश्ता क्या है? हुस्न आखों की तमन्ना कहिये कैफो रानाई से कुछ दूर सही ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जायेगी अब तो वीरानी भी वीरानी नहीं लगती मुझको सन्नाटे से वहशत भी नहीं होती है मैं नहीं चाहती अब दो घड़ी दर्द की मेहमां होकर मुन्कता रिश्ता ए जिस्मों जाँ हो तुम हवा दोगे तो चिंगारी सुलग जायेगी ये सितम अब न कर – दिलरुबा! जाने जहाँ!! | جس گھنی چھاؤں کی آنکھوں میں تمنا لے کر تم کو دیکھا تھا کبھی اب وہ تمنا نہ رہی سرد مہری نے اسے قتل کیا اور پھر؟ کتنے تپتے ہوئے صحراؤں سے گزری ہوں میں میری آنکھوں میں بگولوں کے کئی منظر ہیں عمر سے حسن کا رشتہ کیا ہے؟ حسن آنکھوں کی تمنا کہیے کیف و رعنائی سے کچھ دور سہی زندگی یونہی گزر جائے گی اب تو ویرانی بھی ویرانی نہیں لگتی ہے مجھ کو سنائے سے وحشت بھی نہیں ہوتی ہے میں نہیں چاہتی اب دو گھڑی درد کی مہماں ہو کر منقطع رشتہئ جسم و جاں ہو تم ہوا دو گے تو چنگاری سلگ جائے گی یہ ستم اب نہ کر ۔ دلربا! جان جاں!! |
कत्ल करें
आप, जब प्यार को कहते है रियाकारी है
मेरा “मैं” खानों में बंट जाता है
एक कहता है
बजा कहते हैं
दूसरा कहता है : ये झूठ है. झूठ
ये मोहब्बत मेरी ऐसी तो नहीं
जिसमें तूफान हो बस
जिसमें जज़्बात का हीजान हो बस
ये मोहब्बत तो मुकद्दस है बहुत
चाँद सा नूर, सितारों सी चमक रखती है
इसमें शबनम की नमी
फूल की निखत भी है
आफशारों की तरन्नुम रेज़ी
सुबहखंदाँ सा तबस्सुम इसमें
दिले मायूस के वीराने में
मश्अले राह है ये
आपके “मैं” के भी दो पैकर हैं
एक वो है जो मोहब्बत को रिया कहता है
दूसरा मेरी मोहब्बत पे यकीं रखता है
आओ हम मिल के इसे कत्ल करें
जो मोहब्बत को रियाकार कहा करता है
अपनी हस्ती में मुझे ज़म कर लो
जैसे शबनम को किरन पीती है
ता के हमदोशे सुरैया बनकर
मैं जहांने ताब बनूं
और तुम फक्र करो – अपनी हस्ती में मुझे ज़म कर लो
This poem was published in “Tahreek” New Delhi in August 1974
प्यार के मुस्तहिक़
दर्सग़ाहों मे ताले है हंगामा खेज़ी की लहरें रवाँ बेसुकूनी के बादल घने हो गये नफ्से नाकारा भड़का रहा है उन्हें अपने बच्चे हैं ये! इनकी तहज़ब व तालीम नाकिस रही ! प्यार की प्यास बढ़ती रही दिन-ब-दिन एक कतरा न उनके सुलगते लबों पर गिरा माँ की ममता व शफक्कत से महरूम हैं प्यार उस्ताद का भी ग़ुरेज़ा रहा इनके मासूम दिल यूं तड़पते रहे जैसे बिस्मिल कोइ ज़ेरे शमशीर हो फिर कहीं से बग़ावत की चिंगारी आकर दिमागों पे छाने लगी शोलाज़न हो गयी इंतकामी ख़यालों का ग़लबा हुआ पायी तखरीब व ग़ारतगिरी में पनाह अपने बच्चे हैं ये! अपनी दौलत हैं ये!! इनको राज़े मोहब्बत बता दीजिये आइये और दरसे वफा कीजिये जिन्दगी का सलीका सिखा दीजिये अपने बच्चे हैं ये प्यार के मुसतहिल! | درس گاہوں میں تالے ہیں ہنگامہ خیزی کی لہریں رواں بے سکونی کے بادل گھنے ہوگئے نفس ناکارہ بھڑکا رہا ہے انھیں اپنے بچے ہیں یہ! ان کی تہذیب و تعلیم ناقص رہی! پیار کی پیاس بڑھتی رہی دن بدن ایک قطرہ نہ ان کے سلگتے لبوں پر گرا ماں کی ممتا و شفقت سے محروم ہیں پیار استاد کا بھی گریزاں رہا ان کے معصوم دل یوں تڑپتے رہے جیسے بسمل کوی زیر شمشیر ہو پھر کہیں سے بغاوت کی چنگاری آکر دماغوں پہ چھانے لگی شعلہ زن ہوگئی انتقامی خیالوں کا غلبہ ہوا پائی تخریب و غارت گری میں پناہ اپنے بچے ہیں یہ! اپنی دولت ہیں یہ!! ان کو رازِ محبت بتا دیجیے آئیے اور درسِ وفا دیجیے زندگی کا سلیقہ سکھا دیجیے اپنے بچے ہیں یہ پیار کے مستحق! |
ज़िन्दगी कर्ब है सोज़ है रक्स है साज़ है
जिन्दगी कर्ब है सोज़ है रक्स है साज़ है आपकी चश्मे रौशन सा अंदाज़ है मेरे अहसास छूने लगे हैं तसव्वुर के मिज़राब को आपके क्यूं परेशान हैं? आपका राज़ भी तो मेरा राज़ है जिसके फिक़दान का लोग मातम करें आज भी मुझको इन्सानियत के इस प्यार पर नाज़ है बेगानी के तारीक साये की लरज़िश नहीं चाहिये नासाह! इन के लुत्फ व मोहब्बत का आग़ाज़ है हम बुलायें सरे बज्म एसी रिवायत नहीं ! जी हमारी नहीं आप ही की ये आवाज़ है ये जहाने फना क्यूं नज़र आ रहा दिलकश व दिलरूबा “सानी” अब से सनम के तसव्वुर का एजाज़ है | زندگی کرب ہے سوز ہے رقص ہے ساز ہے آپ کی چشم روشن سا انداز ہے میرے احساس چھونے لگے ہیں تصور کے مضراب کو آپ کے کیوں پریشان ہیں؟ آپ کا راز بھی تو میرا راز ہے جس کے فقدان کا لوگ ماتم کریں آج بھی مجھ کو انسانیت کے اسی پیار پر ناز ہے بد گمانی کے تاریک سائے کی لرزش نہیں چاہیے ناصحا! ان کے لطف و محبت کا آغاز ہے ہم بلائیں سربزم ایسی روایت نہیں! جی ہماری نہیں آپ ہی کی یہ آواز ہے یہ جہانِ فنا کیوں نظر آرہا دلکش و دلربا ثانی عکس صنم کے تصور کا اعجاز ہے |