तर्क ए तअाल्लुक से लगता है

तर्क ए तअल्लुक से लगता है जान से रिश्ता टूटा है
जीवन की पगडंड़ी का ये मोड़ खुदाया कैसा है

इन्सानों ने इन्सानों के खून से प्यास बुझाई है
पैरों का तुम जख्म न देखो, कांटा तो फिर कांटा है

तर्क ए तमन्ना से ये सच है यासो अलम से छूटे हम
शौक का कारोबार नहीं तो खाली खाली लगता है

तेज़ हवा के झोंके से आँखों में आँसू आतें हैं
ग़ैरों की सौग़ात ने पूछो अपना ही कब अपना है

तर्क ए तअल्लुक – संबंध विच्छेद,  separation
तर्क ए तमन्ना – इच्छा छोडना, leaving the desire (to do anything)
यासो अलम- निराशा और दुख, disappointment and anguish
सौग़ात -उपहार, gift

This ghazal was published in “Roshni” Meeruth in February 1976

वादी ऐ होश में अंधेरा है

वादी ऐ होश में अंधेरा है
लौट जा दिल अभी सवेरा है

दिल के आंगन में कोई दीप जले
हर तरफ ज़ुल्मतों का डेरा है

है अदम से वजूद फिर से अदम
जिन्दगी का हसीन फेरा है

मेरी हर शय से आपको नफरत
आपका हर अजीज़ मेरा है

बीन बजती सुनाई देती है
बसे पर्दा कोई संपेरा है

याद गेसू ए यार में गुज़रे
वहशतों का घना अंधेरा है

कैसे खुद आगही मिले “सानी”
आरज़ुओं का सख्त घेरा है !
وادی ہوش میں اندھیرا ہے
 لوٹ جا دل ابھی سویا ہے

دل کے آنگن میں کوئی دیپ جلے
ہر طرف ظلمتوں کا ڈیرہ ہے

ہے عدم سے وجود پھر سے عدم
زندگی کا حسین پھیرا ہے

میری ہر شئے سے آپ کو نفرت
آپ کا ہر عزیز میرا ہے

بین بجتی سنائی دیتی ہے
پس پردہ کوئی سپیرا ہے

یاد گیسوے یار میں گزرے
وحشتوں کا گھنا اندھیرا ہے

کیسے خود آگہی ملے ثانیؔ
آرزوؤں کا سخت گھیرا ہے!
This ghazal was published in “Memark” in August 1970

मौत के इंतज़ार में गुज़री

जिन्दगी खारज़ार में गुज़री
जुस्तजू  ए बहार में गुज़री

कुछ तो पैमाने यार में गुज़री
और कुछ एतबार में गुज़री

मंज़िले ज़ीस्त हमसे सर न हुयी
यादे ग़ेसु ए यार में गुज़री

फूल गिरियां थे हर कली लरजाँ
जाने कैसी बहार में गुज़री

जिन्दगानी तवील थी लेकिन
मौत के इंतज़ार में गुज़री

आप से मिल के जिन्दगी अपनी
जुस्तजू ए करार में गुज़री

जो भी गुज़री बुरी भली “सानी”
आप के इख्तियार में गुज़री

This ghazal was published in “Naya Daur” in January 1973