जिन्दगी खारज़ार में गुज़री
जुस्तजू ए बहार में गुज़री
कुछ तो पैमाने यार में गुज़री
और कुछ एतबार में गुज़री
मंज़िले ज़ीस्त हमसे सर न हुयी
यादे ग़ेसु ए यार में गुज़री
फूल गिरियां थे हर कली लरजाँ
जाने कैसी बहार में गुज़री
जिन्दगानी तवील थी लेकिन
मौत के इंतज़ार में गुज़री
आप से मिल के जिन्दगी अपनी
जुस्तजू ए करार में गुज़री
जो भी गुज़री बुरी भली “सानी”
आप के इख्तियार में गुज़री
This ghazal was published in “Naya Daur” in January 1973