मेरा फनकार

बुर्ज थामे हुये इज़ल पे झुका जाता है
ज़ुल्फ बिखरी हुयी पेशानी पर
शौके बे पाया झलकता हुआ रुखसारों से
फिक्र की चंद लकीरें उभरीं
अश पैमां है तखय्युल उसका
कोई शाहकार बनायेगा ये !
मेरा बच्चा, मेरी उम्मीदों का मरकस
मेरा फनकार है ये
मेरी नाकाम तमन्नाओं की तकमील करे
मेरी नाग़ुफ्ता हिकायत
मेरे इफ्तार की अज़्मत ले कर
मेरे इमां की हरारत ले कर
मेरा पैग़ामे मोहब्बत ले कर
अपना शाहकार मुज़य्यन कर ले !!

This poem was written by Zarina Sani for her 8 year old, who oblivious of his surroundings, was busy drawing.  She clicked his picture, and wrote this poem. It  was published in April 1974 in “Zewar”

शक

रूह आवारा फिरती रही चारसू
प्यार के वास्ते
रक्स करते हुये खनखनाते हुये खड़खड़ाते हुये
नोट और मालो-ज़र की ज़रूरत पड़ी
अपने दामन में थे कुछ उन्हें दे दिये
लेने वाले मोहब्बत से तकने लगे
रूह अहसास शबनम से मसरूरो शादां हुयी
वक्त जब टल गया –
सर्द मोहरी वही बेवफाई वही –
कज अदाई वही –
जिससे जलती रही –
कर्ब का ज़हर दिल में समोये हुये –
और आगे बढ़ी
मैंने जाना खुलूसो मोहब्बत मताऐ गिरां हैं –
अक़ीदत ग़िरां कद्र है –
पेशकश हुस्न की बारगाह में हुयी
वो ये कहने लगे
ये रियाकार है, इक अदाकार है
सर अकीदत ने पीटा, मोहब्बत की आखों से आंसू बहे –
कर्बो अंदोह का ज़हर घुलता रहा
मैं तडपती रही, रूह मेरी सिसकती रही –
और आगे बढ़ी
मेरे बच्चे खड़े थे, महकती महकती मोहब्बत लिये
उनको बाहों में भरकर यही सोचती रह गयी
ये भी धोका न हों !
रेत का चमचमाता सा चश्मा न हों !
सोचिये
आज ममता भी मशफूक है
सोचिये ! सोचिये !!
روح آوارہ پھرتی رہی چار سو،
پیار کے واسطے
رقص کرتے ہوئے کھنکھناتے ہوئے کھڑکھڑاتے ہوئے
نوٹ اور حال و زر کی ضرورت پڑی
اپنے دامن میں تھے کچھ نہیں دے دئیے
لینے والے محبت سے تکنے لگے
روحِ احساس شبنم سے مسرور و شاداں ہوئی
وقت جب ٹل گیا
سرد مہری وہی بے وفائی وہی
کج ادائی وہی
جس سے جلتی رہی
کرب کا زہر دل میں سموئے ہوئے
اور آگے بڑھی
میں نے جانا خلوص و محبت متاعِ گراں ہیں
عقیدت گرانقد ہے
پیشکش حسن کی بار گہ میں ہوئی
وہ یہ کہنے لگے
یہ ریا کار ہے ، اک ادا کار ہے
سر عقیدت نے پیٹا ، محبت کی آنکھوں سے آنسو بہے
کرب و اندوہ کا زہر گھلتا رہا
میں تڑپتی رہی ، روح میری سسکتی رہی
اور آگے بڑھی
میرے بچے کھڑے تھے ، مہکتی لہکتی محبت لئے
اُن کو باہوں میں بھر کر یہی سوچتی رہ گئی
یہ بھی دھوکہ نہ ہو
ریت کا چم چماتا سا چشمہ نہ ہو!
آج ممتا بھی مشکوک ہے
سوچئے! سوچئے!!
This poem was published in “Shayar” Bombay in April 1973; it was written on 13th January 1973.

मेरे बच्चों की हंसी

मेरे बच्चों की हंसी
कुलकुल-ए-मीना जैसे
जैसे नग़्मा हो किसी झरने का
जैसे दोशीज़ा के पायल की झनक
जैसे कलियों के चटक़ने की सदा
जैसे रफ्तार-ए-सबा
जैसे खंदा हो सहर
जैसे महबूब की उल्फत की नज़र
इनकी मासूम हंसी
एश अंगेज़ सुकून मुझको अता करती है
मेरा हर दर्द मिटा देती है
ग़म आफ़ाक़ भुला देती है
मेरे बच्चों की हंसी !
میرے بچوں کی ہنسی
قلقل مینا جیسے
جیسے نغمہ ہو کسی جھرنے کا
جیسے دوشیزہ کے پائل کی جھنک
جیسے کلیوں کے چٹکنے کی صدا
جیسے رفتارِ صبا
جیسے خنداں ہو سحر
جیسے محبوب کی الفت کی نظر
اِن کی معصوم ہنسی
عیش انگیز سکوں مجھ کو عطا کرتی ہے
میرا ہر درد مٹا دیتی ہے
غمِ آفاق بھلا دیتی ہے
میرے بچوں کی ہنسی!
This poem was published in “Shayar” Bombay in January 1968


मेरे बच्चे

मेरे बच्चे मेरी राहों पे बिछाये आंखे
बैठे रहतें है कोई प्यार की मूरत जैसे
अपने महबूब की रह तकती हो
उसकी आंखों के दिये
कभी बुझते हैं,  सुलगते हैं कभी
कभी उम्मीद से गुलनार रुखे रोशन है
और कभी खौफ से
छाये जाती है ज़र्दी ए खिज़ाँ
फिर भी कंदीले मोहब्बत की ज़ियापाशी से
इक किरण चारों तरफ फूटती है
ये मेरे प्यार के मख्ज़न हैं, गुलिस्तां मेरे
ये मेरे प्यार की तकमील हैं, मंज़िल मेरी
बाइस-ए- इज़्ज ओ शरफ, ज़ीनत-ए-महफिल मेरी
 میرے بچے مری راہوںپہ بچھائے آنکھیں
بیٹھے رہتے ہیں ، کوئی پیار کی مورت جیسے
اپنے محبوب کی رہ تکتی ہو
اُس کی آنکھوں کے دِیے
کبھی بجھتے ہیں ، سُلگتے ہیں کبھی
کبھی امید سے گلنار رخِ روشن ہے
اور کبھی خوف سے
چھائے جاتی ہے زردیئ خزاں
پھر بھی قندیل محبت کی ضیا پاشی سے
اِک کرن چاروں طرف پھوٹتی ہے
یہ مرے پیار کے مخزن ہیں ،
گلستاں میرے
یہ مرے پیار کی تکمیل ہیں ، منزل میری
باعث عزّوشرف ، زینتِ محفل میری
This nazm was published in “Shayar”, Bombay in January 1968

प्यार के मुस्तहिक़

दर्सग़ाहों मे ताले
है हंगामा खेज़ी की लहरें रवाँ
बेसुकूनी के बादल घने हो गये
नफ्से नाकारा भड़का रहा है उन्हें
अपने बच्चे हैं ये!
इनकी तहज़ब व तालीम नाकिस रही !
प्यार की प्यास बढ़ती रही दिन-ब-दिन
एक कतरा न उनके सुलगते लबों पर गिरा
माँ की ममता व शफक्कत से महरूम हैं
प्यार उस्ताद का भी ग़ुरेज़ा रहा
इनके मासूम दिल यूं तड़पते रहे
जैसे बिस्मिल कोइ ज़ेरे शमशीर हो
फिर कहीं से बग़ावत की चिंगारी आकर दिमागों पे छाने लगी
शोलाज़न हो गयी
इंतकामी ख़यालों का ग़लबा हुआ
पायी तखरीब व ग़ारतगिरी में पनाह
अपने बच्चे हैं ये! अपनी दौलत हैं ये!!
इनको राज़े मोहब्बत बता दीजिये
आइये और दरसे वफा कीजिये
जिन्दगी का सलीका सिखा दीजिये
अपने बच्चे हैं ये
प्यार के मुसतहिल!
درس گاہوں میں تالے
ہیں ہنگامہ خیزی کی لہریں رواں
بے سکونی کے بادل گھنے ہوگئے
نفس ناکارہ بھڑکا رہا ہے انھیں
اپنے بچے ہیں یہ!
ان کی تہذیب و تعلیم ناقص رہی!
پیار کی پیاس بڑھتی رہی دن بدن
ایک قطرہ نہ ان کے سلگتے لبوں پر گرا
ماں کی ممتا و شفقت سے محروم ہیں
پیار استاد کا بھی گریزاں رہا
ان کے معصوم دل یوں تڑپتے رہے
جیسے بسمل کوی زیر شمشیر ہو
پھر کہیں سے بغاوت کی چنگاری آکر دماغوں پہ چھانے لگی
شعلہ زن ہوگئی
انتقامی خیالوں کا غلبہ ہوا
پائی تخریب و غارت گری میں پناہ
اپنے بچے ہیں یہ! اپنی دولت ہیں یہ!!
ان کو رازِ محبت بتا دیجیے
آئیے اور درسِ وفا دیجیے
زندگی کا سلیقہ سکھا دیجیے
اپنے بچے ہیں یہ
پیار کے مستحق!

This Nazm was published in “Zewar” in February 1973