मेरा फनकार

ब्रुश थामे हुये इज़ल पे झुका जाता है
ज़ुल्फ बिखरी हुयी पेशानी पर
शौक-ए-बे पाया झलकता हुआ रुखसारों से
फिक्र की चंद लकीरें उभरीं
अर्श पैमां है तखय्युल उसका
कोई शाहकार बनायेगा ये !
मेरा बच्चा, मेरी उम्मीदों का मरकज़
मेरा फनकार है ये
मेरी नाकाम तमन्नाओं की तकमील करे
मेरी नाग़ुफ्ता हिकायत
मेरे इफ्तार की अज़्मत ले कर
मेरे इमां की हरारत ले कर
मेरा पैग़ामे मोहब्बत ले कर
अपना शाहकार मुज़य्यन कर ले !!
بُرش تھامے ہوئے ایزل پہ جھکا جاتا ہے
زلف بکھری ہوئی پیشانی پر
شوقِ بے پایاں جھلکتا ہوا رخساروں سے
فکر کی چند لکیریں ابھریں
عرش پیما ہے تخیل اس کا
کوئی شہ کار بنائے گا یہ !
میرا بچہ، مری امیدوں کا مرکز،
مرا فن کار ہے یہ
میری ناکام تمناؤں کی تکمیل کرے
میری نا گفتہ حکایت
مرے افکار کی عظمت لے کر
میرے ایماں کی حرارت لے کر
میرا پیغام محبت لے کر
اپنا شہ کار مزین کرلے!!
This poem was written by Zarina Sani for her 8 year old, who oblivious of his surroundings, was busy drawing.  She clicked his picture, and wrote this poem. It  was published in April 1974 in “Zewar”