ग़म में गुज़रे खुशी में गुज़र जायेगी
ज़िन्दगी फूल की पंखडी है, बिखर जायेगी
दिल के औराक पर शबनमी याद के इतने छींटे पड़े
धूप ग़म की चढ़ी है, उतर जायेगी
कामरा ज़िन्दगी के है ज़ामिन, अमल और जहद मुसलसिल, खुदी का तहफ्फुज़, शउर जहाँ
ये ग़लत है लि उनकी निगाहे करम संवर जायेगी
ख्वाब के धुंधले साये तले कब तलक ज़िन्दगानी गुज़ारोगे तुम
अब कि अहवोफग़ां बे-असर जायेगी
तर्ज़ुरबाती ग़ज़ल साज़े दिल के सुरों पर ज़रा छेडिये
उसकी आवाज़ से एक खुशबू उड़ेगी जिधर जायेगी
आगही नफ्स की, लाशउर और तहतश-शउर और शउर
वक्त के हैं तकाज़े, जो समझो उसे जिन्दगानी ए “सानी” संवर जायेगी
This aazad ghazal was published in “Mahanama Ilmo Danish” in April 1973