चश्म खैरा को एसी चमक चाहिये
अज़्म तकमील पायेगा तूफान की सी लपक चाहिये
सीधे सादे उसूलों पे जीने न दें
ये सियासत ही दुनिया है ! इसे लचक चाहिये
एसे मलबूसे सादा की बज़्मे तरब में इजाज़त नहीं
ठहरिये ठहरिये ! कुछ भड़क कुछ चमक चाहिये
खूबसूरत है ग़ुलमोहर, खुशबू से महरूम है
आज के दौर में कागज़ी फूल में भी महक चाहिये
महफिले रक्स रंगी नही है मसाफे जहाँ
चूड़ियों की खनक आप रखिये इधर तैगो-खंजर की “सानी” झनक चाहिये
This aazad ghazal was published in “Kohsar” Hazaribag in January 1979