किस कदर जोश से इन्सां का खूँ करते हैं जंग होती है तो इन्सान बदल जाते हैं कितने इन्सान को तोपों से उड़ा देते हैं मज़्हबो मुल्क के फरमान बदल जाते हैं नौ-बहारें भी फिज़ाओं से बदल जाती हैं कितनी नाकाम तमन्नायें सिसक उठती हैं कितनी मांगों में भरी जाती है खूँ की सुरखी अपने बच्चों के लिये मायेँ बिलख उठती हैं ज़िंदा रहने के जो सामान अता करती हैं उन ज़मीनों को भी बेकार बना देते हैं बेमुहाबाना किसी शहर पे बमबारी से कितने माज़ी के निशानात मिटा देते हैं बाअसे नंग है इंसा के लिये जंग-जुइ अम्नो-अमन का परचम तो उठा ले कोई हम अखूवत व मोहब्बत का उजाला कर दें इक ज़रा प्यार भरे दिल से सदा दे कोई | کس قدر جوش سے انساں کا خوں کرتے ہیں جنگ ہوتی ہے تو انسان بدل جاتے ہیں کتنے انسان کو توپوں سے اڑا دیتے ہیں مذہب و ملک کے فرمان بدل جاتے ہیں نو بہاریں بھی خزاؤں سے بدل جاتی ہیں کتنی ناکام تمنائیں سسک اٹھتی ہیں کتنی مانگوں میں بھری جاتی ہے خوں کی سرخی اپنے بچوں کے لئے مائیں بِلک اٹھتی ہیں زندہ رہنے کے جو سامان عطا کرتی ہیں اُن زمینوں کو بھی بے کار بنا دیتے ہیں بے محابانہ کسی شہر پہ بمباری سے کتنے ماضی کے نشانات مٹا دیتے ہیں باعث ننگ ہے انساں کے لئے جنگجوئی امن و امان کا پرچم تو اٹھا لے کوئی ہم اخوت و محبت کا اُجالا کردیں اک ذرا پیار بھرے دل سے صدا دے کوئی |
Category: Poetry – ग़ज़लें और नग़मे
मंज़िलों तक रसाई से महरूम ये आरज़ुओं के कितने हसीन क़ाफिले
मंज़िलों तक रसाई से महरूम ये आरज़ुओं के कितने हसीन फासले या खुदा खैर हो फिर वही रास्ते फिर वही मरहले क़ैसो वामिक से कह दो कि आबाद हैं अब भी वो रास्ते सुरखी ए दिल से सेहरा में फिर ग़ुल खिले हमने सोचा था उनके तग़फुल का बदला तग़ाफुल से लें इस ग़लत ज़ोम में दिन ब दिन बढ़ गये फासले मौत के आईने में रुखे यार की इक झलक देख लें इस तमन्ना में मरते रहे दिल जले तुम भी इक्दार कहने को जाने दो रूहानियत पर पढ़ो फतेहा “सानी” अखलाक को भी मशीनों से नापेगें इस दौर के मनचले | منزلوں تک رسائی سے محروم تھے آرزؤں کے کتنے حسین فاصلے یا خدا خیر ہو پھر وہی راستے پھر وہی مرحلے قیس و دامن سے کہہ دو کہ آباد ہیں اب بھی وہ راستے سرخیئ دل سے صحرا میں پھر گل کھلے ہم نے سوچا تھا ان کے تغافل کا بدلہ تغافل سے لیں اس غلط زعم میں دن بدن بڑھ گئے فاصلے موت کے آئینہ میں رخ یار کی ایک جھلک دیکھ لیں اس تمنا میں مرتے رہے دل جلے تم بھی اقدار کہنہ کو جانے دو روحانیت پر پڑھو فاتحہ ثانیؔ اخلاق کو بھی مشینوں سے ناپیں گے اس دور کے من چلے |
आबलापाई है महरूमी है रुसवाई है
आबलापाई है महरूमी है रुसवाई है उस बुते नाज़ का दिल फिर भी तमन्नाई है मेरी आखों से टपकते हैं लहू के आंसू आज बेलौस मोहब्बत की भी रुसवाई है लब पर फिर नाम वही, हुस्न वही आखों में ए दिले ज़ार यही तेरी शकीबाई है मज़्हका खैज़ है अंदाज़े तकल्लुम उनका मये उल्फत मगर आखों में उतर आई है “सानी” ज़ार तू अब और करेगी क्या क्या आस्ताने पे मुसलसिल तो जबीं साई है | آبلہ پائی ہے محرومی ہے رسوائی ہے اُس بت ناز کا دل پھر بھی تمنائی ہے میری آنکھوں سے ٹپکتے ہیں لہو کے آنسو آج بے لوث محبت کی بھی رسوائی ہے لب پہ پھر نام وہی حسن وہی آنکھوں میں اے دلِ زار یہی تیری شکیبائی ہے مضحکہ خیز ہے اندازِ تکلم اُن کا مئے الفت مگر آنکھوں میں اتر آئی ہے ثانیؔ زار تو اب اور کرے گی کیا کیا آستانے پہ مسلسل تو جبیں سائی ہے |
नया मोड़ मिले
आपको देखके एहसास हुआ जैसे मुद्दत से शनासाई हो दिल के रिशते यूँ ही होते हैं मगर! आपकी सिम्त बढ़ी सेहर ज़दा सी होकर! जैसे खीचें किसी तिनके को कोई काह रुबा आपका नर्म चमकता चेहरा जैसे कंदील मेरी राहों की मेरे मुर्शत, मेरे मुशफ्फक! मेरे ऐ काबा ऐ दीन! मेरी राहों को उजाला बख्शें ज़ंग आलूद है शीशा दिल का चश्मे ताबाँ से मुज्जला कर दें … ज़ज़्बा ए कार उभरता ही नहीं अपनी उल्फत से हरारत बख्शें अज़मते फन भी मेरी जूया हो मुझको तर्ज़-ए-नौ की हूँ जिद्दत-ए-इफकार मिले मेरी ता’मीर को आहंग नया इक नया रूप नया रंग नया मोड़ मिले मेरे मुर्शद मेरे ऐ किब्ला-ए-दीन | آپ کودیکھ کے احساس ہوا جیسے مدت سے شناسائی ہو دل کے رشتے یونہی ہوتے ہیں مگر! آپ کی سمت بڑھی سحر زدہ سی ہوکر! جیسے کھینچے کسی تنکے کو ، کوئی کاہ رُبا آپ کا نرم چمکتا چہرہ جیسے قندیل مری راہوں کی میرے مرشد ، مرے مشفق! مرے اے کعبہئ دیں! میری راہوں کو اجالا بخشیں زنگ آلود ہے شیشہ دل کا چشمِ تاباں سے مجلّا کردیں ۔۔۔۔۔۔ ۔۔۔۔۔۔ جذبہئ کار ابھرتا ہی ۔۔۔۔۔۔نہیں اپنی الفت سے حرارت بخشیں عظمت فن بھی مری جویا ، ہو مجھ کو طرز نو کی ہوں جدت افکار ملے میری تعمیر کو آہنگ نیا اک نیا روپ نیا رنگ نیا موڑ ملے میرے مرشد ، مرے اے قبلہئ دیں! |
प्यार के साये में
आप कहते हैं तो ये सोचने लगती हूं मैं प्यार खुदगर्ज़ सही दिल मेरा मक्कार सही आपके दिल में खुलूस और वफा है मख्फी मैं दगाबाज़ सही फितरतन ऐयार सही आपके प्यार के साये में तो अक्सर मुझको राहते रूह मिली कल्ब को तस्कीन हुयी शुक्रिया आपके अहसां का करूँ मैं कैसे था खिज़ाँ दीदा ए चमन आपसे तज़ईन हुयी दिल बेगाना ए आदाब खता कर बैठा जिन्दगी हो गयी फिर नज़्र ए तग़ाफुल शुआरी बदगुमानी ने मोहब्बत को रियाकार कहा दुख हुआ, सोज़ मिला, मिल गयी आहवोज़ारी ज़िन्दगानी के शबिस्तां में सियाही फैली आप कंदीले मोहब्बत ज़रा रोशन कर दें मोअद्दबाना है गुज़ारिश न हो बारे खातिर दिल पशेमान तो है मेहर से गुलशन कर दें मेरी खुशफहमी यही कहती है मुझसे अब भी ज़ाहिरी तर्क ए तआल्लुक है हकीकत तो नहीं चश्मे बातिन से जो देखेंगे इनायत होगी आपको मुझसे मुझे आपसे नफरत तो नहीं | آپ کہتے ہیں تو یہ سوچنے لگتی ہوں میں پیار خود غرض سہی دل میرا مکّار سہی آپ کے دل میں خلوص اور وفا ہے مخفی میں دغا باز سہی فطرتاً عیار سہی آپ کے پیار کے سائے میں تو اکثر مجھ کو راحت روح ملی قلب کو تسکین ہوئی شکریہ آپ کے احساں کا ادا ہو کیسے؟ تھا خزاں دیدہ چمن آپ سے تزئین ہوئی دل بیگانہئ آداب خطا کر بیٹھا زندگی ہوگئی پھر نذرِ تغافل شعاری بدگمانی نے محبت کو ریاکار کہا دکھ ہوا ، سوز ملا ،مل گئی آہ و زاری زندگانی کے شبستاں میں سیاہی پھیلی آپ قندیل محبت ذرا روشن کردیں مؤ دبانہ ہے گذارش نہ ہو بارِ خاطر دل پشیماں تو ہے مہر سے گلشن کردیں میری خوش فہمی یہی کہتی ہے مجھ سے اب بھی ظاہری ترکِ تعلق ہے حقیقت تو نہیں چشمِ باطن سے جو دیکھیں گے عنایت ہوگی آپ کو مجھ سے مجھے آپ سے نفرت تو نہیں |