सरहद पर जाते हुये महबूब से

मेरे महबूब मेरी जाने तमन्ना रुखसत
मेरे अरमान! मेरी प्यार की दुनिया रुखसत
मैं हूं नाशाद मगर मेरा वतन शाद रहे
मादरे हिंद करे तेरा तकाज़ा रुखसत

मुस्कुराहट मेरी बेजान हुयी जाती है
दिल की दुनिया भी तो सुनसान हुयी जाती है
अपने अश्कों के चिराग़ों से चिराग़ाँ कर लूं
बज़्मे आरास्ता वीरान हुई जाती है

ताज़गी चेहरे पे छायी ग़मे वहशत के लिये
मुझको ये वस्ल मिला था तेरी फुर्कत के लिये
चशमे पुरनम दिले बेताब ग़िरफ्तारे अलम
बारेग़म क्या न उठायें हैं मोहब्बत के लिये

अब सदा शिकवा ए तक़दीर किये जाती हूँ
अपनी मजबूरी व तन्हाई पे थर्राती हूँ
किस तरह ये ग़मे फुर्कत मैं उठाऊं हमदम
तेरी फुर्कत के तसव्वुर से लरज़ जाती हूँ

राहते रूह व जिगर जान ए मोहब्बत रुखसत
मेरी बरबादशुदा दिल की मसर्रत रुखसत
गुलशने “सानी” का शिराज़ा बिखर जायेगा
फिर भी ए जान-ए-जहाँ बज़्म की जीनत रुखसत

میرے محبوب مری جانِ تمنا رخصت
میرے ارمان! میری پیار کی دنیا رخصت
میں ہوں ناشاد مگر میرا وطن شاد رہے
مادرِ ہند کرے تیرا تقاضہ رخصت

مسکراہٹ میری بے جان ہوئی جاتی ہے
دل کی دنیا بھی تو سنسان ہوئی جاتی ہے
اپنے اشکوں کے چراغوں سے چراغاں کرلوں
بزم آراستہ ویران ہوئی جاتی ہے

تازگی چہرے پہ چھائی غم وحشت کے لئے
مجھ کو یہ وصل ملا تھا تری فرقت کے لئے
چشم پُرنم دل بے تاب گرفتارِ الم
بارِ غم کیا نہ اٹھائے ہیں محبت کے لئے

اب سدا شکوہئ تقدیر کئے جاتی ہوں
اپنی مجبوری و تنہائی پہ تھراتی ہوں
کس طرح یہ غم فرقت میں اٹھاؤں ہمدم
تری فرقت کے تصور سے لرز جاتی ہوں

راحتِ روح و جگر جان محبت رخصت
میرے برباد شدہ دل کی مسرت رخصت
گلشن ثانیؔ کا شیرازہ بکھر جائے گا
پھر بھی اے جانِ جہاں بزم کی زینت رخصت
This nazm was published in December 1963 (publication unknown)

मेरे वतन के जवानों!

मेरे वतन के जवानों! मेरे चमन के ग़ुलों!!
बहारे नौ के तराने तुम्ही से वाबस्ता
ग़ुले चमन ने तुम्ही से ताज़गी पायी
तुम्ही से अर्जे वतन की जबीं दरख्शँदा
तुम्हीं से हिंद ने फरखंदा रोशनी पायी

मेरी रिवायते कोहना के पासबां हो तुम
तुम्हारी शाने जलाली वतन का झूमर है
तुम्हारे दिल में तमन्ना है सरफरोशी की
तुम्हारे खून की सुर्खी चमन का ज़ेवर है

तुम्हारा अज़्मे शुजाअत है आहनी परदा
कोई हरीफ न सरहद पे आ सके अपनी
जो एक बार निग़ाहों को शोलाबार करो
कोई न जुल्म की नज़रें उठा सके अपनी

तुम्हारे हौसले टकरा गये चट्टानों से
तुम्हारी खंदालबी इक अज़्मे मोहक्कम है
तुम्हारी शोलाफिशां तीग़ जिस्म फौलादी
मुहाज़ जंग पे कहर और बर्क पैहम है
मेरे वतन के जवानों ! मेरे चमन के ग़ुलों!!
!!میرے وطن کے جوانو! میرے چمن کے گلوں
بہارِ نو کر ترانے تمھیں سے وابستہ
گل چمن نے تمھیں سے ہے تازگی پائی
تمھیں سے ارض وطن کی جبیں درخشندہ
تمھیں سے ہند نے فرخندہ روشنی پائی

میری روایتِ کہنہ کے پاسباں ہو تم
تمھاری شانِ جلالی وطن کا جھومر ہے
تمہارے دل میں تمنا ہے سرفروشی کی
تمھارے خون کی سرخی چمن کا زیور ہے

تمھارا عزم شجاعت ہے آہنی پردہ
کوئی حریف نہ سرحد پہ آسکے اپنی
جو ایک بار نگاہوں کو شعلہ بار کرو
کوئی نہ ظلم کی نظریں اٹھا سکے اپنی

تمھارے حوصلے ٹکرا گئے چٹانوں سے
تمھاری خندہ لبی ایک عزم محکم ہے
تمھاری شعلہ فشاں تیغ جسم فولادی
محاذ جنگ پہ پہر اور برق پیہم ہے
!!میرے وطن کے جوانو! میرے چمن کے گلو
This nazm was published in “Aajkal”, Delhi in February 1966 (written on 24th April 1965)

अखूवत का उजाला

किस कदर जोश से इन्सां का खूँ करते हैं
जंग होती है तो इन्सान बदल जाते हैं
कितने इन्सान को तोपों से उड़ा देते हैं
मज़्हबो मुल्क के फरमान बदल जाते हैं

नौ-बहारें भी फिज़ाओं से बदल जाती हैं
कितनी नाकाम तमन्नायें सिसक उठती हैं
कितनी मांगों में भरी जाती है खूँ की सुरखी
अपने बच्चों के लिये मायेँ बिलख उठती हैं

ज़िंदा रहने के जो सामान अता करती हैं
उन ज़मीनों को भी बेकार बना देते हैं
बेमुहाबाना किसी शहर पे बमबारी से
कितने माज़ी के निशानात मिटा देते हैं

बाअसे नंग है इंसा के लिये जंग-जुइ
अम्नो-अमन का परचम तो उठा ले कोई
हम अखूवत व मोहब्बत का उजाला कर दें
इक ज़रा प्यार भरे दिल से सदा दे कोई
کس قدر جوش سے انساں کا خوں کرتے ہیں
جنگ ہوتی ہے تو انسان بدل جاتے ہیں
کتنے انسان کو توپوں سے اڑا دیتے ہیں
مذہب و ملک کے فرمان بدل جاتے ہیں

نو بہاریں بھی خزاؤں سے بدل جاتی ہیں
کتنی ناکام تمنائیں سسک اٹھتی ہیں
کتنی مانگوں میں بھری جاتی ہے خوں کی سرخی
اپنے بچوں کے لئے مائیں بِلک اٹھتی ہیں

زندہ رہنے کے جو سامان عطا کرتی ہیں
اُن زمینوں کو بھی بے کار بنا دیتے ہیں
بے محابانہ کسی شہر پہ بمباری سے
کتنے ماضی کے نشانات مٹا دیتے ہیں

باعث ننگ ہے انساں کے لئے جنگجوئی
امن و امان کا پرچم تو اٹھا لے کوئی
ہم اخوت و محبت کا اُجالا کردیں
اک ذرا پیار بھرے دل سے صدا دے کوئی