मेरे वतन के जवानों!

मेरे वतन के जवानों! मेरे चमन के ग़ुलों!!
बहारे नौ के तराने तुम्ही से वाबस्ता
ग़ुले चमन ने तुम्ही से ताज़गी पायी
तुम्ही से अर्जे वतन की जबीं दरख्शँदा
तुम्हीं से हिंद ने फरखंदा रोशनी पायी

मेरी रिवायते कोहना के पासबां हो तुम
तुम्हारी शाने जलाली वतन का झूमर है
तुम्हारे दिल में तमन्ना है सरफरोशी की
तुम्हारे खून की सुर्खी चमन का ज़ेवर है

तुम्हारा अज़्मे शुजाअत है आहनी परदा
कोई हरीफ न सरहद पे आ सके अपनी
जो एक बार निग़ाहों को शोलाबार करो
कोई न जुल्म की नज़रें उठा सके अपनी

तुम्हारे हौसले टकरा गये चट्टानों से
तुम्हारी खंदालबी इक अज़्मे मोहक्कम है
तुम्हारी शोलाफिशां तीग़ जिस्म फौलादी
मुहाज़ जंग पे कहर और बर्क पैहम है
मेरे वतन के जवानों ! मेरे चमन के ग़ुलों!!
!!میرے وطن کے جوانو! میرے چمن کے گلوں
بہارِ نو کر ترانے تمھیں سے وابستہ
گل چمن نے تمھیں سے ہے تازگی پائی
تمھیں سے ارض وطن کی جبیں درخشندہ
تمھیں سے ہند نے فرخندہ روشنی پائی

میری روایتِ کہنہ کے پاسباں ہو تم
تمھاری شانِ جلالی وطن کا جھومر ہے
تمہارے دل میں تمنا ہے سرفروشی کی
تمھارے خون کی سرخی چمن کا زیور ہے

تمھارا عزم شجاعت ہے آہنی پردہ
کوئی حریف نہ سرحد پہ آسکے اپنی
جو ایک بار نگاہوں کو شعلہ بار کرو
کوئی نہ ظلم کی نظریں اٹھا سکے اپنی

تمھارے حوصلے ٹکرا گئے چٹانوں سے
تمھاری خندہ لبی ایک عزم محکم ہے
تمھاری شعلہ فشاں تیغ جسم فولادی
محاذ جنگ پہ پہر اور برق پیہم ہے
!!میرے وطن کے جوانو! میرے چمن کے گلو
This nazm was published in “Aajkal”, Delhi in February 1966 (written on 24th April 1965)