जब गुज़रते हो तुम इस राह से ऐ माहेजबीं राहे पामाल की तकदीर चमक उठती है रंग और नूर फिज़ाओं में बिखर जाते हैं साज़े नग्मात बहिश्ती की झनक उठती है नक्शे माज़ी के उभर आते हैं रफ्ता रफ्ता प्यार में डूबी सदायें मुझे याद आती हैं ज़िन्दगानी का शबिस्तां महक उठता है कई कंदीलें मोहब्बत की चमक जातीं हैं आपके हुस्न से फैली हुई निखत लेकर अपने अहसासे मोहब्बत को जिला देतीं हूं भूल जाती हूँ रियाकार कहा है मुझको अपनी बेताब निगाहों को बिछा देती हूं मेरी उल्फत में रियाकारी का अंसर भी नहीं आपके हुस्ने मुकद्दस की कसम खाती हूं किस तरह आपने तौहीने मोहब्बत की थी याद आता है लरज़ती हूं सहम जाती हूं देखना है यूं खफा रहते हैं मुझसे कब तक अपनी उल्फत की सदाकत पे यकीन रखती हूं आपकी नज़रे करम आज नहीं है लेकिन अहदे माज़ी की मोहब्बत पे यकीन रखती हूं | جب گزرتے ہو تم اس راہ سے اے ماہِ جبیں راہِ پامال کی تقدیر چمک اٹھتی ہے رنگ اور نور فضاؤں میں بکھر جاتے ہیں سازِ نغمات بہشتی کی جھنک اٹھتی ہے نقش ماضی کے ابھر آتے ہیں رفتہ رفتہ پیار میں ڈوبی صدائیں مجھے یاد آتی ہیں زندگانی کا شبستان مہک اٹھتا ہے کئی قندیلیں محبت کی چمک جاتی ہیں آپ کے حسن سے پھیلی ہوئی نکہت لے کر اپنے احساسِ محبت کو جلا دیتی ہوں بھول جاتی ہوں ریا کار کہاں ہے مجھ کو اپنی بے تاب نگاہوں کو بچھا دیتی ہوں میری الفت میں ریاکاری کا عنصر بھی نہیں آپ کے حسنِ مقدس کی قسم کھاتی ہوں کس طرح آپ نے توہینِ محبت کی تھی یاد آتا ہے لرزتی ہوں ، سہم جاتی ہوں دیکھنا ہے یوں خفا رہتے ہیں مجھ سے کب تک اپنی الفت کی صداقت پہ یقیں رکھتی ہوں آپ کی نظرکرم آج نہیں ہے لیکن عہدِ ماضی کی محبت پہ یقیں رکھتی ہوں |
Category: Poetry – ग़ज़लें और नग़मे
मेरे बच्चों की सदा
सर झुकाये हुये ये सोचने लगती हूं मैं खुदग़र्ज कितनी है दुनिया कितनी मक्कार है ये इसकी फ़ितरत में रियाकारी है बडी अय्यार है ये खुदनुमाई है यहाँ प्यार की कदर नहीं दिल पे छा जाता है इक बार अलम ज़िन्दगी और भी दुश्वार नज़र आती है इसी बे-कैफी व मायूसी में मेरे बच्चों की सदा बनके एक नग्मा नौरोज़ बिखर जाती है ग़मे पिन्हा के लिये वजह तसल्ली है ये ग़मे हस्ती के लिये मरहमो शबनम है ये ज़िन्दगानी के सुलगते हुये सहराओं में एक शादाब सा नक्लिस्तान है मेरे बच्चों की सदा | سر جھکائے ہوئے یہ سوچنے لگتی ہوں میں خود غرض کتنی ہے دنیا کتنی مکار ہے یہ اس کی فطرت میں ریاکاری ہے بڑی عیار ہے یہ خود نمائی ہے یہاں پیار کی قدر نہیں دل پہ چھا جاتا ہے اک بار الم زندگی اور بھی دشوار نظر آتی ہے اسی بے کیفی و مایوسی میں میرے بچوں کی صدا بن کے ایک نغمہ نوروز بکھر جاتی ہے غم پنہاں کے لئے وجہ تسلی ہے یہ غم ہستی کے لئے مرہم و شبنم ہے یہ زندگانی کے سلگتے ہوئے صحراؤں میں ایک شاداب نخلستان ہے میرے بچوں کی صدا |
उसकी आवाज़ों का शोला
उसकी आवाज़ों का शोला जानिबे महफिल लपकता जाये है दर्द ए नाकामी से दिल अपना सिसकता जाये है कर्ब की लहरें तमूज ज़हर का बनकर रगो-पै में उतरती जा रही हैं दर्द का सागर छलकता जाये है चश्मे महज़ूं की रफाकत ग़ालिबन इसको नियस्सर देर तक आती नहीं इसलिये आंसू ढलकता जाये है नासेहा! तर्क ए मोहब्बत तर्क ए दुनिया एक है जो मज़हबन जायज़ नहीं राहबर बन के तू आखिर क्यूँ भटकता जाये है मजलिसे अहले तरब की खैर हो चलने वाली है किसी जानिब से ज़हरीली हवा ये दिल धडकता जाये है बेअमल बैठे हुये हैं मंज़िले मकसूद “सानी” दूर है धीरे धीरे वक्त का सूरज सरकता जाये है | اس کی آوازوں کا شعلہ جانب محفل لپکتا جائے ہے درد ناکامی سے دل اپنا سسکتا جائے ہے کرب کی لہریں تموج زہر کا بن کر رگ و پے میں اترتی جارہی ہیں درد کا ساغر چھلکتا جائے ہے چشم محزوں کی رفاقت غالباً اس کو میسر دیر تک آتی نہیں اس لئے آنسو ڈھلکتا جائے ہے ناصحا! ترکِ محبت ترک دنیا ایک ہے جو مذہباً جائز نہیں راہبر بن کے تو آخر کیوں بھٹکتا جائے ہے مجلس اہلِ طرب کی خیر ہو چلنے والی ہے کسی جانب سے زہریلی ہوا یہ دل دھڑکتا جائے ہے بے عمل بیٹھے ہوئے ہیں منزل مقصود ثانی دور ہے دھیرے دھیرے وقت کا سورج سرکتا جائے ہے |
जंगलों में कहीं
जंगलों में कहीं इक ग़ज़ाले हंसी दिलरुबा बन गयी छा गयी दीदा-औ-दिल पे इक बेखुदी उसके पीछे चली मैं तो चलती गयी रक्स करती हुयी महवे हैरत हुयी देख कर एक कस्र दिल आरा की रानाइयाँ खुशनुमा पत्थरों के सुतूं रंगो निखत के तूफान के सामने ज़िन्दगी सरनगूँ महज़बीनों का रक्से जुनूँ मतरबे नग्मा ज़न मौजे मय गुलफिशाँ सारा माहौल कैफो सुरूर आश्ना बर्क गिरफ्तार लम्हों को चाहा जिरफ्तार कर लूं मगर हाथ से वो फिसलते गये इक ख़ला रह गया खाली खाली निगाहों से मैं देखती रह गयी ! | جنگلو میں کہیں۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔ اک غزالِ حسیں دلربا بن گیا چھاگئی دیدہ و دل پہ اک بے خودی اس کے پیچھے چلی میں تو چلتی گئی رقص کرتی ہوئی محو حیرت ہوئی دیکھ کر ایک قصر دل آرا کی رعنائیاں خوشنما پتھروں کے ستوں رنگ و نکہت کے طوفان کے سامنے زندگی سر نگوں مہہ جبینوں کا رقص جنوں مطربِ نغمہ زن موجِ مے گلفشاں سارا ماحول کیف و سرور آشنا برق رفتار لمحوں کو چاہا گرفتار کرلوں مگر ہاتھ سے وہ پھسلتے گئے اک خلا رہ گیا خالی خالی نگاہوں سے میں دیکھتی رہ گئی! |
अहसास
कुछ तो लम्हात हों मेरे अपने जिनपर हो मुकम्मल कब्ज़ा कुछ खयालात हों मेरे अपने मेरा एहसास हो, जज़्बात हों मेरे अपने ग़ैर का दखल न हो कोई पूछे न लबों पर है तबस्सुम कैसा? कोई पूछे न अयाँ चश्म से वीरानी क्यूँ? सारी दुनिया को तुम्हारी ही नज़र से देखूँ मेरी अपनी भी नज़र है कि नहीं? ज़िन्दगी पर मेरा हक़ है कि नहीं? खुद को बेचा तो नहीं मैने मोहब्बत के एवज़ मैने भी तुमसे मोहब्बत की है मैंने माना कि हूँ मैं शमा-ए-शबिस्ताने वफा मेरी फौलादी ए सीरत का भी नज़ारा करो मुझमें है जू-ए-सुबकसार का नग्मा लेकिन तेज़ी-ए-सैल का पहलू भी छुपा है मुझमें क्यों समझते हो पिघल जाऊँगी मैं कोई मोम की गुड़िया तो नहीं ! जिससे निकले हुये मुद्दत गुज़री तुम तसव्वुर में उसी वादिये खुशरंग में हो! | کچھ تو لمحات ہوںمیرے اپنے جن پر ہو مکمل قبضہ کچھ خیالات ہوں میرے اپنے کچھ خیالات ہوں میرے اپنے میرا احساس ہو ، جذبات ہوں میرے اپنے غیر کو دخل نہ ہو کوئی پوچھے نہ لبوں پر ہے تبسم کیسا؟ کوئی پوچھے نہ عیاں چشم سے ویرانی کیوں؟ ساری دنیا کو تمہاری ہی نظر سے دیکھوں میری اپنی بھی نظر ہے کہ نہیں؟ زندگی پر میرا حق ہے کہ نہیں؟ خود کو بیچا تو نہیں میں نے محبت کے عوض میں نے بھی تم سے محبت کی ہے میں نے مانا کہ ہوں میں شمعِ شبستانِ وفا میری فولادیئ سیرت کا بھی نظارہ کرو مجھ میں ہے جوئے سبکسار کا نغمہ لیکن تیزیئ سیل کا پہلو بھی چھپا ہے مجھ میں کیوں سمجھتے ہو پگھل جاؤں گی میں کوئی موم کی گڑیا تو نہیں! جس سے نکلے ہوئے مدت گزری تم تصور میں اُسی وادیئ خوش رنگ میں ہو! |