लोग कहते हैं सदा अश्क बहाना होगा वो तेरे प्यार को हरगिज़ न समझ पायेंगे वहम है जीत मोहब्बत की हुआ करती है संग में कैसे मोहब्बत की चमक लायेंगे नक्शे बातिर की तरह नक्शे मोहब्बत को भी लौहे दिल से तू मिटा एसा निशां भी न रहे यही बेहतर है एवाने मोहब्बत के दिये इस तरह आज बुझा दे कि धुआँ भी न रहे आज ये पूछती हूँ कोई बता दे मुझको आब गिरता है तो क्यूँ संग पिघल जाता है जब कि इन्सान की कोशिश में लहू शामिल हो फूल वीरान से सेहरा में निकल आता है सर को साहिल से पटकती हैं मुसलसिल मौजें संगे साहिल को भी ज़र्रात बना देती हैं नर्म रफ्तार से नहरों पे हवाऐं चल कर खसो खाशाक को चुपके से बहा देती हैं नक्शे बातिल की तरह कैसे मिटा सकती हैं दिल के आईने में जो नक्श उभर आता है अपना अंदाज़ बदल देंगे यकीं है मुझको एक पत्थर भी तराशो तो चमक जाता है | لوگ کہتے ہیں سدا اشک بہانا ہوگا وہ ترے پیار کو ہرگز نہ سمجھ پائیں گے وہم ہے جیت محبت کی ہوا کرتی ہے سنگ میں کیسے محبت کی چمک لائیں گے؟ نقش باطل کی طرح نقش محبت کو بھی لوح دل سے تو مٹا ایسا نشاں بھی نہ رہے یہی بہتر ہے کہ ایوانِ محبت کے دئیے اس طرح آج بجھا دے کہ دھواں بھی نہ رہے آج یہ پوچھتی ہوں کوئی بتا دے مجھ کو آب گرتا ہے تو کیوں سنگ پگھل جاتا ہے جب کہ انسان کی کوشش میں لہو شامل ہو پھول ویران سے صحرا میں نکل آتا ہے سر کو ساحل سے پٹکتی ہیں مسلسل موجیں سنگِ ساحل کو بھی ذرات بنا دیتی ہیں نرم رفتار سے نہروں پہ ہوائیں چل کر خس و خاشاک ، کو چپکے سے بہا دیتی ہیں نقش باطل کی طرح کیسے مٹا سکتی ہیں دل کے آئینے میں جو نقش ابھر آتا ہے اپنا انداز بدل دیں گے یقیں ہے مجھ کو ایک پتھر بھی تراشو تو چمک جاتا ہے |
Category: Poetry – ग़ज़लें और नग़मे
बरकते इश्क !
कौन कहता है ग़मे इश्क जिगर कावी है सोज़िशे अश्क मुसलसल है ज़ियाँकारी है इश्क का सोज़ ही बनता है रफीके मंज़िल चश्मे हक बीं के लिये रूह की बेदारी है आरज़ुओं का लहू, सोज़िशे अश्क पैहम बादे सहरी हैं ये इन्सान की अज़मत के लिये इश्क का सोज़े दरूं फन को जिला करता है राहे पुर-शौक के खतरे हैं रियाज़त के लिये दरे बस्ता मेरी किस्मत के खुले जाते हैं ! जिस तरह बादे सहर गुंचे शगुफ्ता कर दे ! इस कदर जोशे अमल पाती हूँ दिल में जैसे कोई हर फूल की रग रग में नशा सा भर दे आपकी नज़रे इनायत की अता व बरकत राहे मंज़िल भी मुझे सहल नज़र आती है ज़ुल्मते शामे मुसीबत की सिमट जायेंगी अपनी ताबिंदा जबीं ले के सहर आयी है आप चाहें तो सितारों की चमक भी छू लूं ! इश्के सादिक ने मेरे अज़्म को रफत दी है ! आसमानों की बुलंदी भी कोई बात नहीं ! आपके इश्क ने परवाज़ की कूवत दी है ! | کون کہتا ہے غم عشق جگر کا وی ہے سوزش اشک مسلسل ہے زیاں کاری ہے عشق کا سوز ہی بنتا ہے رفیق منزل چشم حق بیں کے لئے روح کی بیداری ہے آرزؤں کا لہو ، سوزش اشک پیہم باد سحری ہیں یہ انسان کی عظمت کے لئے عشق کا سوز دروں فن کی جلا کرتا ہے راہِ پُر شوق کے خطرے ہیں ریاضت کے لئے درِ بستہ میری قسمت کے کھلے جاتے ہیں! جس طرح بادِ سحر غنچے شگفتہ کردے! اس قدر جوش عمل پاتی ہوں دل میں جیسے کوئی ہر پھول کی رگ رگ میں نشہ سا بھردے آپ کی نظر عنایت کی عطا و برکت راہ منزل بھی مجھے سہل نظر آتی ہے ظلمتیں شامِ مصیبت کی سمٹ جائیں گی اپنی تابندہ جبیں لے کے سحر آئی ہے آپ چاہیں تو ستاروں کی چمک بھی چھو لوں! عشق صادق نے مرے عزم کو رفعت دی ہے! آسمانوں کی بلندی بھی کوئی بات نہیں! آپ کے عشق نے پرواز کی قوت دی ہے! |
शक
रूह आवारा फिरती रही चारसू प्यार के वास्ते रक्स करते हुये खनखनाते हुये खड़खड़ाते हुये नोट और मालो-ज़र की ज़रूरत पड़ी अपने दामन में थे कुछ उन्हें दे दिये लेने वाले मोहब्बत से तकने लगे रूह अहसास शबनम से मसरूरो शादां हुयी वक्त जब टल गया – सर्द मोहरी वही बेवफाई वही – कज अदाई वही – जिससे जलती रही – कर्ब का ज़हर दिल में समोये हुये – और आगे बढ़ी मैंने जाना खुलूसो मोहब्बत मताऐ गिरां हैं – अक़ीदत ग़िरां कद्र है – पेशकश हुस्न की बारगाह में हुयी वो ये कहने लगे ये रियाकार है, इक अदाकार है सर अकीदत ने पीटा, मोहब्बत की आखों से आंसू बहे – कर्बो अंदोह का ज़हर घुलता रहा मैं तडपती रही, रूह मेरी सिसकती रही – और आगे बढ़ी मेरे बच्चे खड़े थे, महकती महकती मोहब्बत लिये उनको बाहों में भरकर यही सोचती रह गयी ये भी धोका न हों ! रेत का चमचमाता सा चश्मा न हों ! सोचिये आज ममता भी मशफूक है सोचिये ! सोचिये !! | روح آوارہ پھرتی رہی چار سو، پیار کے واسطے رقص کرتے ہوئے کھنکھناتے ہوئے کھڑکھڑاتے ہوئے نوٹ اور حال و زر کی ضرورت پڑی اپنے دامن میں تھے کچھ نہیں دے دئیے لینے والے محبت سے تکنے لگے روحِ احساس شبنم سے مسرور و شاداں ہوئی وقت جب ٹل گیا سرد مہری وہی بے وفائی وہی کج ادائی وہی جس سے جلتی رہی کرب کا زہر دل میں سموئے ہوئے اور آگے بڑھی میں نے جانا خلوص و محبت متاعِ گراں ہیں عقیدت گرانقد ہے پیشکش حسن کی بار گہ میں ہوئی وہ یہ کہنے لگے یہ ریا کار ہے ، اک ادا کار ہے سر عقیدت نے پیٹا ، محبت کی آنکھوں سے آنسو بہے کرب و اندوہ کا زہر گھلتا رہا میں تڑپتی رہی ، روح میری سسکتی رہی اور آگے بڑھی میرے بچے کھڑے تھے ، مہکتی لہکتی محبت لئے اُن کو باہوں میں بھر کر یہی سوچتی رہ گئی یہ بھی دھوکہ نہ ہو ریت کا چم چماتا سا چشمہ نہ ہو! آج ممتا بھی مشکوک ہے سوچئے! سوچئے!! |
मेरे बच्चों की हंसी
मेरे बच्चों की हंसी कुलकुल-ए-मीना जैसे जैसे नग़्मा हो किसी झरने का जैसे दोशीज़ा के पायल की झनक जैसे कलियों के चटक़ने की सदा जैसे रफ्तार-ए-सबा जैसे खंदा हो सहर जैसे महबूब की उल्फत की नज़र इनकी मासूम हंसी एश अंगेज़ सुकून मुझको अता करती है मेरा हर दर्द मिटा देती है ग़म आफ़ाक़ भुला देती है मेरे बच्चों की हंसी ! | میرے بچوں کی ہنسی قلقل مینا جیسے جیسے نغمہ ہو کسی جھرنے کا جیسے دوشیزہ کے پائل کی جھنک جیسے کلیوں کے چٹکنے کی صدا جیسے رفتارِ صبا جیسے خنداں ہو سحر جیسے محبوب کی الفت کی نظر اِن کی معصوم ہنسی عیش انگیز سکوں مجھ کو عطا کرتی ہے میرا ہر درد مٹا دیتی ہے غمِ آفاق بھلا دیتی ہے میرے بچوں کی ہنسی! |
मेरे बच्चे
मेरे बच्चे मेरी राहों पे बिछाये आंखे बैठे रहतें है कोई प्यार की मूरत जैसे अपने महबूब की रह तकती हो उसकी आंखों के दिये कभी बुझते हैं, सुलगते हैं कभी कभी उम्मीद से गुलनार रुखे रोशन है और कभी खौफ से छाये जाती है ज़र्दी ए खिज़ाँ फिर भी कंदीले मोहब्बत की ज़ियापाशी से इक किरण चारों तरफ फूटती है ये मेरे प्यार के मख्ज़न हैं, गुलिस्तां मेरे ये मेरे प्यार की तकमील हैं, मंज़िल मेरी बाइस-ए- इज़्ज ओ शरफ, ज़ीनत-ए-महफिल मेरी | میرے بچے مری راہوںپہ بچھائے آنکھیں بیٹھے رہتے ہیں ، کوئی پیار کی مورت جیسے اپنے محبوب کی رہ تکتی ہو اُس کی آنکھوں کے دِیے کبھی بجھتے ہیں ، سُلگتے ہیں کبھی کبھی امید سے گلنار رخِ روشن ہے اور کبھی خوف سے چھائے جاتی ہے زردیئ خزاں پھر بھی قندیل محبت کی ضیا پاشی سے اِک کرن چاروں طرف پھوٹتی ہے یہ مرے پیار کے مخزن ہیں ، گلستاں میرے یہ مرے پیار کی تکمیل ہیں ، منزل میری باعث عزّوشرف ، زینتِ محفل میری |