अपनी तन्हाई से जब घबरा गये

अपनी तन्हाई से जब घबरा गये
तेरी अज़मत का सहीफा खोल कर देखा किये
मेरे दिल पर तेज़ नज़रों का असर
अब्र के कतरे जैसे मुज़तरिब पत्ते हुये
ग़ुल्सितां के वास्ते बेकार है अपना लहू
तिश्नगी खारे मग़ीलाँ की बुझे
मंज़िलों तक न रसाई का हमें शिकवा नहीं
राहबर के रूप में हासिद मिले
अहले मंसब, अहले ज़र अपने नहीं, दामन तही
बात ज़ाती खूबियों से क्या बने !
ज़ात का अहसास वाबिस्ता है “सानी” जिस्मों जाँ के तार से
बाद इसके मातमे अहबाब हो, या कब्र पर कतबा लगे
 اپنی تنہائی سے جب گھبرا گئے
تیری عظمت کا صحیفہ کھول کر دیکھا کئے
میرے دل پر تیز نظروں کا اثر
ابر کے قطرے سے جیسے مضطرب پتے ہوئے
گلستاں کے واسطے بیکار ہے اپنا لہو
تشنگی خارِ مغیلاں کی بجھے
منزلوں تک نارسائی کا ہمیں شکوہ نہیں
راہبر کے روپ میں حاسد ملے
اہل منصب، اہل زر اپنے نہیں ، دامن تہی
بات ذاتی خوبیوں سے کیا بنے!
ذات کا احساس وابستہ ہے ثانیؔ جسم و جاں کے تار سے
بعد اس کے ماتم احباب ہو ، یاقبر پہ کتبہ لگے
Publication date and magazine of this aazad nazm is not known

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