आपको देखके एहसास हुआ जैसे मुद्दत से शनासाई हो दिल के रिशते यूँ ही होते हैं मगर! आपकी सिम्त बढ़ी सेहर ज़दा सी होकर! जैसे खीचें किसी तिनके को कोई काह रुबा आपका नर्म चमकता चेहरा जैसे कंदील मेरी राहों की मेरे मुर्शत, मेरे मुशफ्फक! मेरे ऐ काबा ऐ दीन! मेरी राहों को उजाला बख्शें ज़ंग आलूद है शीशा दिल का चश्मे ताबाँ से मुज्जला कर दें … ज़ज़्बा ए कार उभरता ही नहीं अपनी उल्फत से हरारत बख्शें अज़मते फन भी मेरी जूया हो मुझको तर्ज़-ए-नौ की हूँ जिद्दत-ए-इफकार मिले मेरी ता’मीर को आहंग नया इक नया रूप नया रंग नया मोड़ मिले मेरे मुर्शद मेरे ऐ किब्ला-ए-दीन | آپ کودیکھ کے احساس ہوا جیسے مدت سے شناسائی ہو دل کے رشتے یونہی ہوتے ہیں مگر! آپ کی سمت بڑھی سحر زدہ سی ہوکر! جیسے کھینچے کسی تنکے کو ، کوئی کاہ رُبا آپ کا نرم چمکتا چہرہ جیسے قندیل مری راہوں کی میرے مرشد ، مرے مشفق! مرے اے کعبہئ دیں! میری راہوں کو اجالا بخشیں زنگ آلود ہے شیشہ دل کا چشمِ تاباں سے مجلّا کردیں ۔۔۔۔۔۔ ۔۔۔۔۔۔ جذبہئ کار ابھرتا ہی ۔۔۔۔۔۔نہیں اپنی الفت سے حرارت بخشیں عظمت فن بھی مری جویا ، ہو مجھ کو طرز نو کی ہوں جدت افکار ملے میری تعمیر کو آہنگ نیا اک نیا روپ نیا رنگ نیا موڑ ملے میرے مرشد ، مرے اے قبلہئ دیں! |
Author: swatisani
प्यार के साये में
आप कहते हैं तो ये सोचने लगती हूं मैं प्यार खुदगर्ज़ सही दिल मेरा मक्कार सही आपके दिल में खुलूस और वफा है मख्फी मैं दगाबाज़ सही फितरतन ऐयार सही आपके प्यार के साये में तो अक्सर मुझको राहते रूह मिली कल्ब को तस्कीन हुयी शुक्रिया आपके अहसां का करूँ मैं कैसे था खिज़ाँ दीदा ए चमन आपसे तज़ईन हुयी दिल बेगाना ए आदाब खता कर बैठा जिन्दगी हो गयी फिर नज़्र ए तग़ाफुल शुआरी बदगुमानी ने मोहब्बत को रियाकार कहा दुख हुआ, सोज़ मिला, मिल गयी आहवोज़ारी ज़िन्दगानी के शबिस्तां में सियाही फैली आप कंदीले मोहब्बत ज़रा रोशन कर दें मोअद्दबाना है गुज़ारिश न हो बारे खातिर दिल पशेमान तो है मेहर से गुलशन कर दें मेरी खुशफहमी यही कहती है मुझसे अब भी ज़ाहिरी तर्क ए तआल्लुक है हकीकत तो नहीं चश्मे बातिन से जो देखेंगे इनायत होगी आपको मुझसे मुझे आपसे नफरत तो नहीं | آپ کہتے ہیں تو یہ سوچنے لگتی ہوں میں پیار خود غرض سہی دل میرا مکّار سہی آپ کے دل میں خلوص اور وفا ہے مخفی میں دغا باز سہی فطرتاً عیار سہی آپ کے پیار کے سائے میں تو اکثر مجھ کو راحت روح ملی قلب کو تسکین ہوئی شکریہ آپ کے احساں کا ادا ہو کیسے؟ تھا خزاں دیدہ چمن آپ سے تزئین ہوئی دل بیگانہئ آداب خطا کر بیٹھا زندگی ہوگئی پھر نذرِ تغافل شعاری بدگمانی نے محبت کو ریاکار کہا دکھ ہوا ، سوز ملا ،مل گئی آہ و زاری زندگانی کے شبستاں میں سیاہی پھیلی آپ قندیل محبت ذرا روشن کردیں مؤ دبانہ ہے گذارش نہ ہو بارِ خاطر دل پشیماں تو ہے مہر سے گلشن کردیں میری خوش فہمی یہی کہتی ہے مجھ سے اب بھی ظاہری ترکِ تعلق ہے حقیقت تو نہیں چشمِ باطن سے جو دیکھیں گے عنایت ہوگی آپ کو مجھ سے مجھے آپ سے نفرت تو نہیں |
नक्शे माज़ी
जब गुज़रते हो तुम इस राह से ऐ माहेजबीं राहे पामाल की तकदीर चमक उठती है रंग और नूर फिज़ाओं में बिखर जाते हैं साज़े नग्मात बहिश्ती की झनक उठती है नक्शे माज़ी के उभर आते हैं रफ्ता रफ्ता प्यार में डूबी सदायें मुझे याद आती हैं ज़िन्दगानी का शबिस्तां महक उठता है कई कंदीलें मोहब्बत की चमक जातीं हैं आपके हुस्न से फैली हुई निखत लेकर अपने अहसासे मोहब्बत को जिला देतीं हूं भूल जाती हूँ रियाकार कहा है मुझको अपनी बेताब निगाहों को बिछा देती हूं मेरी उल्फत में रियाकारी का अंसर भी नहीं आपके हुस्ने मुकद्दस की कसम खाती हूं किस तरह आपने तौहीने मोहब्बत की थी याद आता है लरज़ती हूं सहम जाती हूं देखना है यूं खफा रहते हैं मुझसे कब तक अपनी उल्फत की सदाकत पे यकीन रखती हूं आपकी नज़रे करम आज नहीं है लेकिन अहदे माज़ी की मोहब्बत पे यकीन रखती हूं | جب گزرتے ہو تم اس راہ سے اے ماہِ جبیں راہِ پامال کی تقدیر چمک اٹھتی ہے رنگ اور نور فضاؤں میں بکھر جاتے ہیں سازِ نغمات بہشتی کی جھنک اٹھتی ہے نقش ماضی کے ابھر آتے ہیں رفتہ رفتہ پیار میں ڈوبی صدائیں مجھے یاد آتی ہیں زندگانی کا شبستان مہک اٹھتا ہے کئی قندیلیں محبت کی چمک جاتی ہیں آپ کے حسن سے پھیلی ہوئی نکہت لے کر اپنے احساسِ محبت کو جلا دیتی ہوں بھول جاتی ہوں ریا کار کہاں ہے مجھ کو اپنی بے تاب نگاہوں کو بچھا دیتی ہوں میری الفت میں ریاکاری کا عنصر بھی نہیں آپ کے حسنِ مقدس کی قسم کھاتی ہوں کس طرح آپ نے توہینِ محبت کی تھی یاد آتا ہے لرزتی ہوں ، سہم جاتی ہوں دیکھنا ہے یوں خفا رہتے ہیں مجھ سے کب تک اپنی الفت کی صداقت پہ یقیں رکھتی ہوں آپ کی نظرکرم آج نہیں ہے لیکن عہدِ ماضی کی محبت پہ یقیں رکھتی ہوں |
मेरे बच्चों की सदा
सर झुकाये हुये ये सोचने लगती हूं मैं खुदग़र्ज कितनी है दुनिया कितनी मक्कार है ये इसकी फ़ितरत में रियाकारी है बडी अय्यार है ये खुदनुमाई है यहाँ प्यार की कदर नहीं दिल पे छा जाता है इक बार अलम ज़िन्दगी और भी दुश्वार नज़र आती है इसी बे-कैफी व मायूसी में मेरे बच्चों की सदा बनके एक नग्मा नौरोज़ बिखर जाती है ग़मे पिन्हा के लिये वजह तसल्ली है ये ग़मे हस्ती के लिये मरहमो शबनम है ये ज़िन्दगानी के सुलगते हुये सहराओं में एक शादाब सा नक्लिस्तान है मेरे बच्चों की सदा | سر جھکائے ہوئے یہ سوچنے لگتی ہوں میں خود غرض کتنی ہے دنیا کتنی مکار ہے یہ اس کی فطرت میں ریاکاری ہے بڑی عیار ہے یہ خود نمائی ہے یہاں پیار کی قدر نہیں دل پہ چھا جاتا ہے اک بار الم زندگی اور بھی دشوار نظر آتی ہے اسی بے کیفی و مایوسی میں میرے بچوں کی صدا بن کے ایک نغمہ نوروز بکھر جاتی ہے غم پنہاں کے لئے وجہ تسلی ہے یہ غم ہستی کے لئے مرہم و شبنم ہے یہ زندگانی کے سلگتے ہوئے صحراؤں میں ایک شاداب نخلستان ہے میرے بچوں کی صدا |
उसकी आवाज़ों का शोला
उसकी आवाज़ों का शोला जानिबे महफिल लपकता जाये है दर्द ए नाकामी से दिल अपना सिसकता जाये है कर्ब की लहरें तमूज ज़हर का बनकर रगो-पै में उतरती जा रही हैं दर्द का सागर छलकता जाये है चश्मे महज़ूं की रफाकत ग़ालिबन इसको नियस्सर देर तक आती नहीं इसलिये आंसू ढलकता जाये है नासेहा! तर्क ए मोहब्बत तर्क ए दुनिया एक है जो मज़हबन जायज़ नहीं राहबर बन के तू आखिर क्यूँ भटकता जाये है मजलिसे अहले तरब की खैर हो चलने वाली है किसी जानिब से ज़हरीली हवा ये दिल धडकता जाये है बेअमल बैठे हुये हैं मंज़िले मकसूद “सानी” दूर है धीरे धीरे वक्त का सूरज सरकता जाये है | اس کی آوازوں کا شعلہ جانب محفل لپکتا جائے ہے درد ناکامی سے دل اپنا سسکتا جائے ہے کرب کی لہریں تموج زہر کا بن کر رگ و پے میں اترتی جارہی ہیں درد کا ساغر چھلکتا جائے ہے چشم محزوں کی رفاقت غالباً اس کو میسر دیر تک آتی نہیں اس لئے آنسو ڈھلکتا جائے ہے ناصحا! ترکِ محبت ترک دنیا ایک ہے جو مذہباً جائز نہیں راہبر بن کے تو آخر کیوں بھٹکتا جائے ہے مجلس اہلِ طرب کی خیر ہو چلنے والی ہے کسی جانب سے زہریلی ہوا یہ دل دھڑکتا جائے ہے بے عمل بیٹھے ہوئے ہیں منزل مقصود ثانی دور ہے دھیرے دھیرے وقت کا سورج سرکتا جائے ہے |