उसकी आवाज़ों का शोला जानिबे महफिल लपकता जाये है दर्द ए नाकामी से दिल अपना सिसकता जाये है कर्ब की लहरें तमूज ज़हर का बनकर रगो-पै में उतरती जा रही हैं दर्द का सागर छलकता जाये है चश्मे महज़ूं की रफाकत ग़ालिबन इसको नियस्सर देर तक आती नहीं इसलिये आंसू ढलकता जाये है नासेहा! तर्क ए मोहब्बत तर्क ए दुनिया एक है जो मज़हबन जायज़ नहीं राहबर बन के तू आखिर क्यूँ भटकता जाये है मजलिसे अहले तरब की खैर हो चलने वाली है किसी जानिब से ज़हरीली हवा ये दिल धडकता जाये है बेअमल बैठे हुये हैं मंज़िले मकसूद “सानी” दूर है धीरे धीरे वक्त का सूरज सरकता जाये है | اس کی آوازوں کا شعلہ جانب محفل لپکتا جائے ہے درد ناکامی سے دل اپنا سسکتا جائے ہے کرب کی لہریں تموج زہر کا بن کر رگ و پے میں اترتی جارہی ہیں درد کا ساغر چھلکتا جائے ہے چشم محزوں کی رفاقت غالباً اس کو میسر دیر تک آتی نہیں اس لئے آنسو ڈھلکتا جائے ہے ناصحا! ترکِ محبت ترک دنیا ایک ہے جو مذہباً جائز نہیں راہبر بن کے تو آخر کیوں بھٹکتا جائے ہے مجلس اہلِ طرب کی خیر ہو چلنے والی ہے کسی جانب سے زہریلی ہوا یہ دل دھڑکتا جائے ہے بے عمل بیٹھے ہوئے ہیں منزل مقصود ثانی دور ہے دھیرے دھیرے وقت کا سورج سرکتا جائے ہے |