ऐ संगे-राह ! आबलापई न दे मुझे
एसा न हो कि कोई राह सुझाई न दे मुझे
सतहे शऊर पर है मेरे शोर इस कदर
अब नग्मा-ए-ज़मीर सुनाई न दे मुझे
इन्सानियत का जाम जहँा पाश पाश हो
अल्लाह मेरे एसी खुदाई न दे मुझे
रंगीनियाँ शबाब की इतनी हैं दिल फरेब
बालों पे आती धूप दिखाई न दे मुझे
तर्क-ए-तआलुक्कात पे इसरार था तुझे
अब तो मेरी वफा की दुहाई न दे मुझे
बे-बालों पर हूँ, रास न आयेगी ये फिज़ा
“सानी” कफस से अपनी रिहाई न दे मुझे
This ghazal was published in “Pasbaan”, Chandiarh on 26th February, 1979.