हस्ती

मेरी हस्ती की हकीकत क्या है
एक शोला है हवा की ज़द पर
जो भड़कता भी है
जो सर्द भी हो जाता है
या सफीना है कोई
वक्त की लहरों पे रवाँ
अाज तक हस्ती ए मौहूम का इर्फां न हुअा
खुदशनासी व खुदअागाही क्या
नफ्स ए नाकारा तकाज़े तेरे
खुदफरेबी के सिवा कुछ भी नही
कौन समझायेगा हस्ती की हक़ीक़त मुझको
है कोई?
कोई भी है?
میری ہستی کی حقیقت کیا ہے
ایک شعلہ ہے ہوا کی زد پر
جو بھڑکتا بھی ہے
جو سرد بھی ہو جاتا ہے
یا سفینہ ہے کوئی
وقت کی لہروں پہ رواں
آج تک ہستیئ موہوم کا عرفاں نہ ہوا
خود شناسی و خود آگاہی کیا
نفس ناکارہ تقاضے تیرے
خود فریبی کے سوا کچھ بھی نہیں
کون سمجھائے گا ہستی کی حقیقت مجھ کو
ہے کوئی؟
کوئی بھی ہے؟
This free verse written by Dr. Zarina Sani was published in a magazine called “Tehreek” in February 1973.

हस्ती- अस्तित्व, existance
सफीना – कश्ती, boat
मौहूम – काल्पनिक, imaginary
इर्फां – विवेक, wisdom
खुदशनासी-  अपने अाप की पहचान, self recognition
खुदअागाही – अात्मज्ञान, knowledge of soul
नफ्स ए नाकारा- वर्य्थ/मिथ्या जीवन, useless existence
तकाज़े – माँग, demand
खुदफरेबी अातमवंचना, self deception

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