ख़ला

बदन के कैपसूल में
अजीब सा सफूक है भरा हुआ
कसीफ है लतीफ है
ग़लीज़ है नफीस है
सियाह है सफेद है
शररो गुल नफ्स नफ्स
यही है कश्मकश मिले जुले
जो कश्मकश तमाम हो
बदन सिवाय खून के नहीं है कुछ
ख़ला
ख़ला
ख़ला
 بدن کے کیپسول میں
عجیب سا سفوف ہے بھرا ہوا
کثیف ہے لطیف ہے غلیظ ہے نفیس ہے سیاہ ہے سفید ہے
شرر و گل ملے جلے
یہی ہے کشمکش نفس نفس
جو کشمکش تمام ہو
بدن سوائے خوں کے نہیں ہے کچھ
خلا
خلا
خلا
This symbolic poetry ( जदीद) was published in January 1975; publication not known.