शक्ल धुधंली सी है शीशे में निखर जायेगी, मेरे अहसास की गर्मी से संवर जायेगी आज वो काली घटाओं पे हैं नाज़ां लेकिन, चाँद सी रौशनी बालों पे उतर जायेगी जिन्दगी मर्हला-ए-दार-ओ-रसन हो जैसे दिल की बेचारगी ता-वक्त सहर जायेगी ज़ौक तरतीब से थी कोख़ सदफ़ की महरूम कैसा अंधेरा है ये बात मगर अब्र के सर जायेगी मोहनी ड़ाल रही है गुलतर की सूरत ज़द पे आयेगी हवा के वो, बिखर जायेगी वक्त रफ्तार का बहता हुआ दरिया “सानी” जिन्दगी आपके साये में नहीं, न सही फिर भी गुज़र जायेगी | شکل دھندلی سی ہے شیشنے میں نکھر جائے گی میرے احساس کی گرمی سے سنور جائے گی آج وہ کالی گھٹائوں پہ ہیں نازاں لیکن چاند سی روشنی بالوں پہ اتر جائے گی زندگی مرحلۂ دار و رسن ہو جیسے دل کی بے چارگی تا وقت سحر جائے گی ذوق ترتیب سے تھی کوکھ صدف کی محروم کیسا اندھیر ہے یہ بات مگر ابر کے سر جائے گی موہنی ڈال رہی ہے گل تر کی صورت زد پہ آئے گی ہوا کے وہ ، بکھر جائے گی وقت رفتار کا بہتا ہوا دریا ثانیؔ زندگی آپ کے سائے میں نہیں ، نہ سہی پھر بھی گذر جائے گی |
* अाज़ाद ग़ज़ल : जब ग़ज़ल के शेरों से मीटर की पाबंदी हटा दी जाती है मगर रदीफ और क़ाफिये की पाबंदी बरकार रखी जाती है. ड़ा. ज़रीना सानी अाज़ाद ग़ज़ल की समर्थक थीं, अौर उन्होंने कई ऐसी ग़ज़लें लिखीं.
रदीफ: अशअार का वो शब्द जो दोनों मिसरों मे अाता है (शेर की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं) (जायेगी, अायेगी)
क़ाफीया: वह शब्द जो शेर की हर पंक्ती में रदीफ के पहले अाता है (निखर, संवर, उतर)
मर्हला — destination
दार-ओ-रसन -gallows and prison
सदफ़ – sea shell
महरूम -deprived (here barren -the sea shell is without a pearl)
अब्र- clouds (rain clouds)