जिस घनी छांव की आखों में तमन्ना लेकर तुम को देखा था कभी अब वो तमन्ना न रही सर्दमोहरी ने उसे कत्ल किया और फिर? कितने तपते हुये सेहराओं से गुज़री हूँ मैं मेरी आखों में बग़ूलों के कई मंज़र हैं उम्र से हुस्न का रिश्ता क्या है? हुस्न आखों की तमन्ना कहिये कैफो रानाई से कुछ दूर सही ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जायेगी अब तो वीरानी भी वीरानी नहीं लगती मुझको सन्नाटे से वहशत भी नहीं होती है मैं नहीं चाहती अब दो घड़ी दर्द की मेहमां होकर मुन्कता रिश्ता ए जिस्मों जाँ हो तुम हवा दोगे तो चिंगारी सुलग जायेगी ये सितम अब न कर – दिलरुबा! जाने जहाँ!! | جس گھنی چھاؤں کی آنکھوں میں تمنا لے کر تم کو دیکھا تھا کبھی اب وہ تمنا نہ رہی سرد مہری نے اسے قتل کیا اور پھر؟ کتنے تپتے ہوئے صحراؤں سے گزری ہوں میں میری آنکھوں میں بگولوں کے کئی منظر ہیں عمر سے حسن کا رشتہ کیا ہے؟ حسن آنکھوں کی تمنا کہیے کیف و رعنائی سے کچھ دور سہی زندگی یونہی گزر جائے گی اب تو ویرانی بھی ویرانی نہیں لگتی ہے مجھ کو سنائے سے وحشت بھی نہیں ہوتی ہے میں نہیں چاہتی اب دو گھڑی درد کی مہماں ہو کر منقطع رشتہئ جسم و جاں ہو تم ہوا دو گے تو چنگاری سلگ جائے گی یہ ستم اب نہ کر ۔ دلربا! جان جاں!! |