जंगलों में कहीं इक ग़ज़ाले हंसी दिलरुबा बन गयी छा गयी दीदा-औ-दिल पे इक बेखुदी उसके पीछे चली मैं तो चलती गयी रक्स करती हुयी महवे हैरत हुयी देख कर एक कस्र दिल आरा की रानाइयाँ खुशनुमा पत्थरों के सुतूं रंगो निखत के तूफान के सामने ज़िन्दगी सरनगूँ महज़बीनों का रक्से जुनूँ मतरबे नग्मा ज़न मौजे मय गुलफिशाँ सारा माहौल कैफो सुरूर आश्ना बर्क गिरफ्तार लम्हों को चाहा जिरफ्तार कर लूं मगर हाथ से वो फिसलते गये इक ख़ला रह गया खाली खाली निगाहों से मैं देखती रह गयी ! | جنگلو میں کہیں۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔ اک غزالِ حسیں دلربا بن گیا چھاگئی دیدہ و دل پہ اک بے خودی اس کے پیچھے چلی میں تو چلتی گئی رقص کرتی ہوئی محو حیرت ہوئی دیکھ کر ایک قصر دل آرا کی رعنائیاں خوشنما پتھروں کے ستوں رنگ و نکہت کے طوفان کے سامنے زندگی سر نگوں مہہ جبینوں کا رقص جنوں مطربِ نغمہ زن موجِ مے گلفشاں سارا ماحول کیف و سرور آشنا برق رفتار لمحوں کو چاہا گرفتار کرلوں مگر ہاتھ سے وہ پھسلتے گئے اک خلا رہ گیا خالی خالی نگاہوں سے میں دیکھتی رہ گئی! |