कौन कहता है ग़मे इश्क जिगर कावी है सोज़िशे अश्क मुसलसल है ज़ियाँकारी है इश्क का सोज़ ही बनता है रफीके मंज़िल चश्मे हक बीं के लिये रूह की बेदारी है आरज़ुओं का लहू, सोज़िशे अश्क पैहम बादे सहरी हैं ये इन्सान की अज़मत के लिये इश्क का सोज़े दरूं फन को जिला करता है राहे पुर-शौक के खतरे हैं रियाज़त के लिये दरे बस्ता मेरी किस्मत के खुले जाते हैं ! जिस तरह बादे सहर गुंचे शगुफ्ता कर दे ! इस कदर जोशे अमल पाती हूँ दिल में जैसे कोई हर फूल की रग रग में नशा सा भर दे आपकी नज़रे इनायत की अता व बरकत राहे मंज़िल भी मुझे सहल नज़र आती है ज़ुल्मते शामे मुसीबत की सिमट जायेंगी अपनी ताबिंदा जबीं ले के सहर आयी है आप चाहें तो सितारों की चमक भी छू लूं ! इश्के सादिक ने मेरे अज़्म को रफत दी है ! आसमानों की बुलंदी भी कोई बात नहीं ! आपके इश्क ने परवाज़ की कूवत दी है ! | کون کہتا ہے غم عشق جگر کا وی ہے سوزش اشک مسلسل ہے زیاں کاری ہے عشق کا سوز ہی بنتا ہے رفیق منزل چشم حق بیں کے لئے روح کی بیداری ہے آرزؤں کا لہو ، سوزش اشک پیہم باد سحری ہیں یہ انسان کی عظمت کے لئے عشق کا سوز دروں فن کی جلا کرتا ہے راہِ پُر شوق کے خطرے ہیں ریاضت کے لئے درِ بستہ میری قسمت کے کھلے جاتے ہیں! جس طرح بادِ سحر غنچے شگفتہ کردے! اس قدر جوش عمل پاتی ہوں دل میں جیسے کوئی ہر پھول کی رگ رگ میں نشہ سا بھردے آپ کی نظر عنایت کی عطا و برکت راہ منزل بھی مجھے سہل نظر آتی ہے ظلمتیں شامِ مصیبت کی سمٹ جائیں گی اپنی تابندہ جبیں لے کے سحر آئی ہے آپ چاہیں تو ستاروں کی چمک بھی چھو لوں! عشق صادق نے مرے عزم کو رفعت دی ہے! آسمانوں کی بلندی بھی کوئی بات نہیں! آپ کے عشق نے پرواز کی قوت دی ہے! |