कुछ तो लम्हात हों मेरे अपने जिनपर हो मुकम्मल कब्ज़ा कुछ खयालात हों मेरे अपने मेरा एहसास हो, जज़्बात हों मेरे अपने ग़ैर का दखल न हो कोई पूछे न लबों पर है तबस्सुम कैसा? कोई पूछे न अयाँ चश्म से वीरानी क्यूँ? सारी दुनिया को तुम्हारी ही नज़र से देखूँ मेरी अपनी भी नज़र है कि नहीं? ज़िन्दगी पर मेरा हक़ है कि नहीं? खुद को बेचा तो नहीं मैने मोहब्बत के एवज़ मैने भी तुमसे मोहब्बत की है मैंने माना कि हूँ मैं शमा-ए-शबिस्ताने वफा मेरी फौलादी ए सीरत का भी नज़ारा करो मुझमें है जू-ए-सुबकसार का नग्मा लेकिन तेज़ी-ए-सैल का पहलू भी छुपा है मुझमें क्यों समझते हो पिघल जाऊँगी मैं कोई मोम की गुड़िया तो नहीं ! जिससे निकले हुये मुद्दत गुज़री तुम तसव्वुर में उसी वादिये खुशरंग में हो! | کچھ تو لمحات ہوںمیرے اپنے جن پر ہو مکمل قبضہ کچھ خیالات ہوں میرے اپنے کچھ خیالات ہوں میرے اپنے میرا احساس ہو ، جذبات ہوں میرے اپنے غیر کو دخل نہ ہو کوئی پوچھے نہ لبوں پر ہے تبسم کیسا؟ کوئی پوچھے نہ عیاں چشم سے ویرانی کیوں؟ ساری دنیا کو تمہاری ہی نظر سے دیکھوں میری اپنی بھی نظر ہے کہ نہیں؟ زندگی پر میرا حق ہے کہ نہیں؟ خود کو بیچا تو نہیں میں نے محبت کے عوض میں نے بھی تم سے محبت کی ہے میں نے مانا کہ ہوں میں شمعِ شبستانِ وفا میری فولادیئ سیرت کا بھی نظارہ کرو مجھ میں ہے جوئے سبکسار کا نغمہ لیکن تیزیئ سیل کا پہلو بھی چھپا ہے مجھ میں کیوں سمجھتے ہو پگھل جاؤں گی میں کوئی موم کی گڑیا تو نہیں! جس سے نکلے ہوئے مدت گزری تم تصور میں اُسی وادیئ خوش رنگ میں ہو! |